Education, News, Health, English poetry in hindi, Tourism, 12th class ncert english book flamingo and hornbill

Breaking

Monday, January 7, 2019

क्या राफेल घोटाला है? | Rafale Deal

क्या राफेल घोटाला है? | Rafale Deal


क्या राफेल घोटाला है? | Rafale Deal
Rafale

 Rafale Deal

काफी समय से इस मुद्दे पर हो हल्ला चला हुआ है। विपक्षी दलों का आरोप है कि ये डील एक घोटाला है। क्या ये घोटाला है या नहीं, इस पर दोनों पक्षों की बात को आपके समक्ष रखा जाएगा।
विपक्षी दलों के आरोप :

1. राफेल की कीमत UPA सरकार ने  526 करोड़ में  तय किया था। लेकिन NDA सरकार  एक राफेल की 1600 करोड़ तय की गई है।

2.  राफेल का निर्माण भारत की सरकारी कम्पनी जो बर्षों से जहाज बना रही है, उसे हटा कर अनिल अंबानी की कम्पनी को दिया गया , ताकि उसे फायदा पहुंचाया जा सके ।

3.  प्रधानमंत्री ने किस से सलाह करने के बाद HAL से हटकर अम्बानी की कंपनी को offset कंपनी बनाया।

4. कीमत को लेकर कोई सेक्रेट पैक्ट का डील में कोई प्रावधान  नहीं है। ये दावा  फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के साथ हुई  कथित बात के आधार पर किया जा रहा है।

5. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आप ही 2016 में पूरे समझौते को बदल दिया, बिना किसी से सलाह के बिना।

6. अपने मित्र अनिल अम्बानी को 30 हजार करोड़ का फायदा पहुंचाने के लिए उसे ऑफसेट पार्टनर बनाने के लिए HAL को कॉन्ट्रैक्ट से बाहर किया।

7. UPA सरकार 126 राफेल खरीदने जा रही थी लेकिन NDA सरकार ने सिर्फ 36 जहाज ही खरीद रही है।
लगभग यही आरोप है जो बार बार विभिन्न शब्दों का प्रयोग करके लगाये जा रहे है। और इसके लिए कई तरह के असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक भाषा का प्रयोग किया गया ।संसद के अंदर भी और बाहर भी।

सरकार का इस सारे मामले पर ज़बाब  | क्या राफेल घोटाला है? | rafale deal

अब सरकार की तरफ समय समय पर विभिन्न अवसरों पर सफाई भी दी गयी। लेकिन ववाल फिर भी नही थमा। अब दिसम्बर 2018 से शुरू हुये शीतकालीन सत्र में पहले तो कार्यबाही को बार बार बाधित किया गया । फिर सदन में नियम 193 के तहत चर्चा की गई , जिसका जबाब सम्बंधित मंत्री को देना होता है। जाहिर तौर पर यहां रक्षामंत्री को जबाब देना था। रक्षामंत्री ने सिलसिलेबार इन सब सवालों का जबाब दिया -

1.   कारगिल युद्ध के बाद अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के समय वायुसेना ने लड़ाकू विमानों को खरीदने की मांग रखी गयी। इसमे 126 विमान ख़रीदने को सैद्धान्तिक मंजूरी दी गयी और इसके लिये आगामी प्रकिया को अपनाया जाना था। इसी बीच सरकार बदली और 2006 में टेंडर मांगे गये। 2012 में टेंडर खोला गया तो राफेल L1 वेंडर बन कर उभरा। तकनीकी विशेषज्ञों की टीम ने मंजूरी दी गयी। लेकिन समझौता नही हो सका। और 2014 में फिर सरकार बदल गयी और ये समझौता बिना नतीजे पर पहुंचे रह गया।

रक्षामन्त्री का तर्क | क्या राफेल घोटाला है? Rafale Deal

हमारे पड़ोसी लगातार अपनी सैन्य ताकत बड़ाते जा हैं। चीन ने लगभग 400 एयरक्राफ्ट सेना में शामिल किए।जिनमें 4th जनरेशन J10 , J11 ,J16  Su27  Su30  और यही नहीं 5th जेनेरेशन विमान भी अपनी वायुसेना में शामिल किये। पाकिस्तान ने भी इस दौरान अपने विमानों की संख्या दोगुनी कर ली उसने F16, 43J,  F17 plus chinese विमान शामिल किए।
भारत के पास 2002 में 42 squadron थे। जो 2012 में घट कर 36 हो गये। और 2015 में घटकर 33 ही रह गए। जहां एक तरफ हमारे पड़ोसी अपने सैन्य ताकत मजबूत कर रहे थे इंडिया की ताकत कम हो रही थी।
जैसा कि वित्त मंत्री श्री जेटली जी ने भी स्पष्ट किया कि रक्षा खरीद दो तरीकों से की जा सकती है। एक टेंडर प्रकिया द्वारा और दूसरा दो सरकारों के बीच समझौता IGA (Inter Governmental Agreement) करके।
सेना की तत्काल जरूरत को देखते हुए दूसरा तरीका अपनाया। मतलब सरकार ने एमरजेंसी को देखते हुए  नए समझौते पर काम किया। और अप्रैल 2016 में समझौते पर हस्ताक्षर हुए जो भारत और फ्रांस की सरकार के बीच था।
राफेल की कीमत पर रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि विपक्ष का जो  दावा है कि UPA सरकार द्वारा 526 करोड़ में तय किया था, उसका कोई प्रमाण मंत्रालय में नहीं है। बल्कि उस नेगोशिएशन में MMRCA का मूल्य 737 करोड़ रूपये तय किया जा रहा था। जो बेसिक जहाज के लिए तय किया जा रहा था। जहाज में मिसाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, युद्ध सम्बन्धी उपकरण लगाने के लिए सरकार को अलग से समझौता करना पड़ना था ।

 लेकिन मोदी सरकार ने बेसिक एयरक्राफ्ट का रेट 670 करोड़ तय किया है। जो संसद में भी बताया गया है। इस तरह बेसिक एयरक्राफ्ट की कीमत 9% कम तय की गई है। बाकी पूरी तरह से तैयार जहाज की कीमत का खुलासा नहीं किया जा सकता । लेकिन बेसिक जहाज की कीमत से पूरी तरह से तैयार जहाज़ की तुलना (तथाकथित 1600 करोड़ से ) नही की जा सकती है। यही नही सरकार का दावा है कि UPA सरकार 70 हज़ार करोड़ का सौदा करने की तैयारी में थी, जो ही नहीं सका। लेकिन मोदी सरकार ने 58 हज़ार करोड़ में इस सौदे को पूरा किया है। और इस तरह से कुल सौदे को भी पिछ्ली सरकार में होने बाले सौदे से बेहतर बताया है।

2.     दूसरा पॉइंट की HAL से क्यों नहीं निर्माण किया जा रहा है।  इसके लिए रक्षामन्त्री ने स्पष्ट किया कि पिछली सरकार ने दो बातें अनसुलझी छोड़ी थी।
 A,  HAL से निर्माण करबाने में 2.7 गुना ज्यादा मैनपावर चाहिए थी। इस बजह से देसऑल्ट में निर्मित एयरक्राफ्ट से HAL में निर्मित एयरक्राफ्ट महंगा पड़ने वाला था।

B,  HAL  निर्मित एयरक्राफ्ट की गारंटी लेने को देसऑल्ट तैयार नहीं था।

इन दो अनसुलझे विषयों की बजह से UPA सरकार ने कोई समझौता साइन नही कर सकी। यही नहीं संसदीय स्थायी समिति ने भी 2012 से  2014 के बीच HAL (Hindustan aironotics limited) की कार्यप्रणाली और उसकी कार्यकुशलता पर सवाल उठाया था। और HAL KO 53 वैवर्स और कन्सेशन सरकार द्वारा उस दौरान दी गयी।
3.     तीसरे पॉइंट के जबाब में ये कहा गया कि डिप्टी चीफ ऑफ एयरफोर्स की अध्यक्षता में बनी कमेटी के द्वारा, राफेल का सौदा मार्च 2015 से लेकर अप्रैल 2016 के 14 महीने की  अवधि के दौरान 74 मीटिंग के बाद किया गया है। जो भारत सरकार और फ्रांस की सरकार के बीच हुआ है। इस समझौते में कोई  ऐसा प्रावधान नहीं है कि सरकार ऑफसेट पार्ट्नर तय करेगी । ये काम सिर्फ और सिर्फ देसऑल्ट को करना है इसके लिए वह स्वतंत्र है। इसलिए ये कहना कि मोदी अपने आप कॉन्ट्रेक्ट बदला, गलत है।

4.      ये कहना कि कीमत को लेकर कोई सीक्रेट पैक्ट नही है सही नही है। इसके जबाब में रक्षा मन्त्री  ने सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट का हवाला दिया कि कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे में राफेल की कीमत माँगी। जब सरकार ने ये कोर्ट को  उपलब्ध कराया। कोर्ट ने ये माना कि बेसिक कीमत सार्वजनिक हो चुकी है, चूंकि सरकार ने इसकी कीमत संसद में भी नही बताई है इसलिए इसकी कीमत को उजागर करना उचित नही है । रक्षामन्त्री ने दावा किया कि यदि माननीय श्री राहुल गांधी ने यदि सच मे ही ऐसी कोई बात पूर्व राष्ट्रपति मेक्रोन से की है तो इसकी कॉपी ऑथेंटिकेशन के साथ सदन के पटल पर रखें।

5.      सरकार द्वारा कि  ये बात नकार दी गयी है की मोदी ने ये बदलाब  किया गया। ये सौदा 14 महीनों की 74 मीटिंग का नतीजा है। इस सौदे के लिए गठित 7 सदस्यों की कमेटी ने इस CCS Report पर  अपने हस्ताक्षर किए हैं। हालाँकि जॉइन्ट सेक्रेटरी ने इस पर कुछ सवाल उठाए थे, कोई भी अपने मत को व्यक्त करने के लिए सवाल उठा सकता है, और वो आपत्ति रिकॉर्ड में दर्ज है। लेकिन उसने भी बाकी 6 मेम्बेर्स के साथ CCS report पर  हस्ताक्षर किए है।

6.     अनिल अम्बानी को फायदा पहुँचाने का सबसे बड़ा आरोप सरकार पर लगा है। इसके जबाब में सरकार का कहना है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए देसऑल्ट स्वतंत्र है। इसमें भारत सरकार या फ्रांस की सरकार का कोई भूमिका नहीं है। कम्पनी किसी को भी ऑफसेट चुन सकती है

यहाँ ये जानना जरूरी है कि ऑफसेट कंपनी है क्या ?
 उदाहरण के लिये 1 करोड़ का जहाज़ भारत को बेचता है तो उसे 50 लाख का सामान भारतीय कंपनियों से खरीदना पड़ेगा या भारत मे अनुसंधान आदि पर खर्च करना पड़ेगा। ये एक कंपनी भी हो सकती है या छोटी बड़ी  50 या 100 कंपनियां हो सकती है। और किन कंपनियों को ऑफसेट पार्टनर बनाया है ये देसऑल्ट को पहला एयरक्राफ्ट भारत को सप्लाई करने के एक साल के भीतर बताना है। सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है कि अक्टूबर,2019 में पहला एयरक्राफ्ट भारत आ जायेगा । तो इस तरह देसऑल्ट के पास अक्टूबर 2020 तक का टाइम है कि वह भारत सरकार को ये बताये की उसने किन किन कंपनियों को ऑफसेट पार्टनर चुना है और उनसे क्या खरीदा, नहीं तो देसऑल्ट को पेनल्टी का सामना करना पड़ेगा।
अब इस सौदे की बात , इस कुल सौदे (58 हजार करोड़) का 50% यानी लगभग 30 हजार करोड़ भारत में ऑफसेट कंपनियों से सामान खरीदने के लिए खर्च करना पड़ेगा। इसमें एयरक्राफ्ट के पुर्जे या कोई और सामान हो सकता है। कितनी कंपनियों से खरीदेगा ये भी अभी नहीं कहा जा सकता । इसमें अनिल अम्बानी की कंपनी का शेयर कितना होगा? जाहिर है 50%  तो होगा नहीं क्योंकि कई छोटी बड़ी कंपनियों को ऑफसेट के रूप में शामिल करने की बात चल रही है। तो ये कहना कि अनिल अम्बानी को 30 हजार करोड़ का फायदा पहुँचाया गया, फिलहाल तो सच साबित नही हो रहा है।

7.     आखिरी पॉइंट कि 126 एयरक्राफ्ट UPA सरकार खरीदने बाली थी लेकिन मोदी सरकार ने कम करके 36 एयरक्राफ्ट कर दिया । इस पर रक्षा मंत्री ने सफाई दी।कि पिछली सरकार 18 एयरक्राफ्ट flyaway कंडिशन में भारत आने थे और 108 भारत मे बनने थे। लेकिन मोदी सरकार ने 18 की बजाए 36 एयरक्राफ्ट flyaway कंडीशन में देसऑल्ट से खरीदने का सौदा किया है। रक्षा मंत्री सीतारमण ने उदाहरण के साथ बताया कि 1982, 1985 और 1987 में भारत एमरजेंसी खरीद के तहत 2 squadron (1squdron =18 aircraft) खरीद चुका है । अतः मोदी सरकार ने भी एमरजेंसी खरीद करने के लिए 2 स्क्वाड्रन यानी 36 एयरक्राफ्ट flyaway कंडीशन खरीदने का फैसला किया । रक्षा मंत्री ने ये भी दावा किया 36 एयरक्राफ्ट UPA के 18 से दोगुने हैं और बाकी के 90 एयरक्राफ्ट भारत में निर्मित किये जाने हैं। इसलिए रक्षा मंत्री ने आरोप लगाया कि  विपक्षी पार्टी देश को गुमराह कर रही है। सरकार ने एयरक्राफ्ट की सँख्या कम नही बल्कि बढ़ाई है।
ऑफसेट पार्टनर के सवाल पर मन्त्री ने कहा कि सरकार को इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नही है कि देसऑल्ट ने किसको ऑफसेट पार्टनर चुना है क्योंकि अभी अधिकारिक पत्र देसऑल्ट से प्राप्त नही हुआ है  जो कुछ भी सुना जा रहा है वो मीडिया रिपोर्ट पर ही आधारित है।

इसके अलावा कोर्ट के हवाले से भी बहुत कुछ साफ करने की कोशिश की गई। कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 25 को  उदृत किया गया जिसमें ये कहा गया है कि कीमत , प्रकिया और ओफ़्सेट में हमें दखल देने का कोई कारण दिखाई नही देता। किसी की व्यक्तिगत धारणा इस मामले में गहन छानबीन का कारण नहीं बन सकती।
यहां पर हमने दोनों पक्षों की बात पाठकों और भारत की जनता के सामने रखने का प्रयत्न किया है। यहाँ जो कुछ भी लिखा गया है वो दोनों पक्षों के मीडिया बयानों और लोकसभा में चर्चा के दौरान रखे गए ब्यानों के आधार पर है, इसमें किसी प्रकार की व्यक्तिगत विचार को शामिल नहीं किया गया है।
पाठकों पर छोड़ दिया जाता है कि वे इस लेख को पढ़कर स्वयं सिद्ध करें कि कौन सही है और कौन देश को गुमराह कर रहा है। तथ्यों के आधार पर आलोचना और धारणा बनाना उचित है।
- MsB.



No comments: