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Friday, November 9, 2018

शिमला कालका रेल लाइन के 115 साल पूरे

  शिमला कालका के जनक बाबा भलखू
           


ऐतिहासिक कालका-शिमला रेल मार्ग आज 115 साल का हो गया है. 9 नवंबर, 1903 को कालका से शिमला रेलमार्ग की शुरुआत हुई थी. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान एक मस्तमौला साधु ने महज छड़ी के सहारे जटिल कालका-शिमला रेल मार्ग रच डाला था.अपने 115 वर्ष के सफर में यह रेल मार्ग इतिहास संजोए हुए है. जिस रेल लाइन को बिछाने में धुरंधर ब्रिटिश इंजीनियरों के पसीने छूट गए उसे एक मस्तमौला साधु ने महज छड़ी के सहारे जटिल कालका-शिमला रेल मार्ग रच डाला था.

 



 उस मस्तमौला साधु का नाम बाबा भलखू था. अंग्रेजी हुकूमत ने बाबा भलखू को बेहद सम्मान दिया था. शताब्दी पूरा कर चुके इस मार्ग को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है.यह रेल मार्ग उत्तर रेलवे के अंबाला डिविजन के अंतर्गत है. देश-विदेश के हजारों सैलानी हर साल शिमला आने के लिए इसी रेलमार्ग से टॉय ट्रेन में सफर का आनंद लेते हुए पहाड़ों की रानी शिमला पहुंचते हैं. 1896 में इस रेलमार्ग को बनाने का कार्य दिल्ली-अंबाला कंपनी को सौंपा गया था. कालका-शिमला रेल को केएसआर के नाम से भी जाना जाता है. 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस मार्ग से यात्रा की थी.जिस रेल लाइन को बिछाने में धुरंधर ब्रिटिश इंजीनियरों के पसीने छूट गए थे, उसे एक मस्तमौला हिमाचली फकीर ने अपनी छड़ी के सहारे पूरा किया था. इस फकीर का नाम बाबा भलखू था.
             



सौ साल से भी अधिक पुराने यूनेस्को के हैरिटेज रेल मार्ग का जिक्र बाबा भलखू के बिना अधूरा है. सोलन व शिमला जिला की सीमा पर चायल के झाजा गांव के रहने वाले बाबा भलखू दैवीय शक्तियों से संपन्न थे.कालका-शिमला रेल मार्ग के निर्माण के दौरान अंग्रेज इंजीनियर बरोग एक जगह सुरंग निकालते समय नाकाम साबित हुए. सुरंग के दोनों छोर मिले नहीं. नाराज अंग्रेज सरकार ने उन पर एक रुपए जुर्माना किया. असफलता और जुर्माने से खुद को अपमानित महसूस कर उन्होंने बरोग ने आत्महत्या कर ली. बाद में बाबा भलखू ने अपनी छड़ी के सहारे ट्रैक का सर्वे किया.बाबा भलखू अपनी छड़ी के साथ आगे-आगे और अंग्रेज इंजीनियर उनके पीछे-पीछे चले. इस तरह सुरंग नंबर 33 पूरी हुई. साथ ही रेलवे के इतिहास में अमर हो गया बाबा भलखू का नाम. शिमला गजट में दर्ज है कि अंग्रेज हुकूमत ने बाबा भलखू को पगड़ी और मैडल के साथ सम्मानित किया था. कुल 103 सुरंगों वाले कालका-शिमला रेल मार्ग का इतिहास रोमांच से भरपूर है.कालका-शिमला रेलवे ट्रैक के निर्माण के दौरान सुरंग नंबर 33  बनाई जा रही थी. इस स्थान पर अंग्रेज इंजीनियर कर्नल बरोग सुरंग निर्माण में लगे इंजीनियरों व श्रमिकों की अगुवाई कर रहे थे. गलती से इस सुरंग के दोनों छोर नहीं मिल पाए. अंग्रेज सरकार ने कर्नल बरोग पर एक रुपए जुर्माना किया. नाकामी से शर्मिंदा हुए हुए कर्नल बरोग ने आत्महत्या कर ली.उसके बाद चीफ इंजीनियर एचएस हैरिंगटन ने सुरंग निर्माण की जिम्मेदारी ली. चायल के झाजा गांव के रहने वाले फकीर बाबा भलखू की दैवीय शक्तियों से परिचित अंग्रेज हुकूमत ने बाबा का सहयोग लिया. बाबा भलखू के पास एक छड़ी थी, जिसके सहारे वे पहाड़ और चट्टानों को ठोक-ठोक कर उस स्थान को चिन्हित करते, जहां से सुरंग निकल सकती थी.
           


हैरत की बात यह रही कि बाबा भलखू के सारे अनुमान सौ फीसदी सच हुए. सुरंग के दोनों छोर मिल गए. बाद में सुरंग का नामकरण कर्नल बरोग के नाम पर किया गया. इसे सुरंग नंबर 33 कहा जाता है. तीन साल के अंतराल में ही 1143.61 मीटर सुरंग बन गई. इसके निर्माण पर 8.40 लाख रुपए खर्च हुए थे. यहां बता दें कि जिस सुरंग के दो छोर नहीं मिल पाए थे, वो मौजूदा सुरंग से कुछ ही दूरी पर है.यह भी दिलचस्प है कि बरोग सुरंग लंबे अरसे तक भारत की दूसरी सबसे लंबी रेल सुरंग रही. कालका-शिमला रेल मार्ग में कुल 889 पुल व 103 सुरंगें हैं. लेकिन इस समय सुरंगों की संख्या 102 है, क्योंकि सुरंग नंबर 43 भूस्खलन में ध्वस्त हो चुकी है.
By MsB